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वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठण्डा हाथ / साग़र सिद्दीकी

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वक़्त के रंगीं गुल-दस्ते को याद आएगा ठण्डा हाथ
जब बिखरेंगे वो गेसू तो मर जाएगा ठण्डा हाथ

भीगी पलकें सोच की उलझन दामन थामे पूछ रही हैं
कब तक तार-ए-गरेबाँ यारो सुलझाएगा ठण्डा हाथ

साज़-ए-तग़ज़्ज़ुल छेड़ने वालो ऐ अफ़्साने लिखने वालो
आज लकीरों की तफ़्सीरें दोहराएगा ठण्डा हाथ

गर्म लहू की बूँदें बोएँ तन्हाई की मिट्टी डालें
पतझड़ आए उन शाख़ों पर उग आएगा ठण्डा हाथ

पत्थर पत्थर जोत जलेगी साहिल साहिल शोले होंगे
भीगी भीगी सर्द हवा में शरमाएगा ठण्डा हाथ

बाग़ के माली मेरे ग़ुंचे ग़ैरों ने पामाल किए
फिर भी तेरी फुलवारी को महकाएगा ठण्डा हाथ