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वक़्त के साथ ढल गए होते / राम नाथ बेख़बर
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वक़्त के साथ ढल गए होते
सबसे आगे निकल गए होते
सारी दुनिया बदल गई होती
काश हम ख़ुद बदल गए होते
वक़्त कैसे तबाह कर पाता
वक़्त पर गर सँभल गए होते
फूल की चीख़ रह गई दबकर
वरना पत्थर पिघल गए होते
ख़्वाब ही क्यों कुचल गए हैं वो
मेरा दिल भी कुचल गए होते