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वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं / सुभाष पाठक 'ज़िया'

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वक़्त के साथ मैं चलूँ कि नहीं
सोचता हूँ वफ़ा करूँ कि नहीं

तुझसे मिलकर तेरा न हो जाऊँ
सो बता तुझसे मैं मिलूँ कि नहीं

वो मुसल्सल सवाल करता है
उसको कोई जवाब दूँ कि नहीं

उसने मुड़ मुड़ के बारहा देखा
मैं उसे देखता भी हूँ कि नहीं

मेरे ही ज़िस्म तक न पहुँचा नूर
सोच में है दिया जलूँ कि नहीं

ये ख़ुशी है छुईमुई जैसी
मशवरा दो इसे छुऊँ कि नहीं

ऐ'ज़िया' तू है जुस्तजू मेरी
मैं तेरा इन्तिज़ार हूँ कि नहीं