भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त जीवन में ऐसा न आये कभी / अशोक अंजुम
Kavita Kosh से
वक़्त जीवन में ऐसा न आये कभी
ख़त किसी के भी कोई जलाये कभी
धुल है, धुंध है, शोर ही शोर है
कोई मधुवन में बंसी बजाये कभी
मेरी मासूमियत खो गई है कहीं
काश बचपन मेरा लौट आये कभी
जिसकी खातिर में लिखता रहा उम्र भर
वो भी मेरी ग़ज़ल गुनगुनाये कभी