भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक़्त ठहर जाता है / संतोष श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
झील की बाहों में
चाँद के आते ही
सितारों ने
सतह को चूम
लिक्खे बधाई गीत
मुस्कुरा उठे चीड़ वन
हवा की अंगड़ाई में
लरज उठी कुसुमलता
बजते रहे बांस वन
वक्त भी तो ठहर जाता है
प्रेम के विस्तार में