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वक़्त ने कैसी चोट लगाई जिससे दिल रंजूर हुआ / ईश्वरदत्त अंजुम
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वक़्त ने कैसी चोट लगाई जिससे दिल रंजूर हुआ
विश्वासों की साख मिली तो हर नाता काफ़ूर हुआ
हाल कहूँ क्या माज़ी का फ़र्दा भी अब तो साथ नहीं
भटक रहा हूँ सहरा सहरा साहिल कितना दूर हुआ
कैसी है ये खाना दारी और ये कैसा जोम यहां
पल भर ठहरूँ दम घुटता है हर बंधन काफ़ूर हुआ
बोझ उठा कर रिश्तों का अब क़दम क़दम चलना मुश्किल
रिश्तों ने जो जख़्म दिया है बढ़ कर वो नासूर हुआ
वक़्त का धारा तेज़ है कितना पल में निकला दूर कहीं
सर के झुकाया वक़्त ने उसके जो भी कोई मग़रूर हुआ
कितने सच्चे लोग थे वो जो अपने पन के साथ चले
अक्स ही अब बाकी है उनका अस्ल तो चकनाचूर हुआ