Last modified on 3 अप्रैल 2010, at 13:15

वक़्त ने फिर पन्ना पलटा है/ सतपाल 'ख़याल'

 
वक़्त ने फिर पन्ना पलटा है
अफ़साने में आगे क्या है?

घर में हाल बजुर्गों का अब
पीतल के बरतन जैसा है

कोहरे में लिपटी है बस्ती
सूरज भी जुगनू लगता है

जन्मों-जन्मों से पागल दिल
किस बिछुड़े को ढूँढ रहा है?

जो माँगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुख माँगा है

रोके से ये कब रुकता है
वक़्त का पहिया घूम रहा है

आज 'ख़याल' आया फिर उसका
मन माज़ी में डूब गया है

हमने साल नया अब घर की
दीवारों पर टाँग दिया है।