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वक़्त लग जाएगा जगाने में / नित्यानन्द तुषार
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वक़्त लग जाएगा जगाने में
लोग सोए हैं इस ज़माने में
ख्व़ाब सबके हसीन होते हैं
उम्र लगती है उनको पाने में
दुश्मनों को भी मात करते हैं
दोस्त कैसे हैं इस ज़माने में
अब जो हमदर्द बनके आए हैं
वो भी शामिल हैं घर जलाने में
लोग इतना नहीं समझ पाते
क्या बिगड़ता है मुस्कराने में
सच को सच जो 'तुषार' कहते हैं
वो ही रहते हैं अब निशाने में