वक्तव्य गीत / रमेश रंजक
नंगी तुकबन्दी की गलियों में रहा नहीं हूँ मैं
मैं गीतकार का जप-तप हूँ, कहकहा नहीं हूँ मैं
ज़िन्दगी जी सकूँ समझौतावादी
इतनी न मुझे मिल पाई आज़ादी
छन्द की गन्ध ने ऐसा मोह लिया
वह गीत हो गया जो गुनगुना दिया
पगड़ी धर कर नारेबाज़ी में बहा नहीं हूँ मैं
मैं गीतकार का जप-तप हूँ, कहकहा नहीं हूँ मैं
हर स्वस्थ गीत आचमन किया मैंने
बेदाग़ क़लम को नमन किया मैंने
परवाह न की उन महामहन्तों की
जो सिर्फ़ ओढ़ते चादर सन्तों की
यायावर हूँ लेकिन पथ का अजदहा नहीं हूँ मैं
मैं गीतकार का आसन हूँ, कहकहा नहीं हूँ मैं
लफ़्फ़ाज़ी मुझसे हाथ मिलाने को
टुक खड़ी रही दोस्ती बढ़ाने को
चाँदी ने अपनी ब्रह्म-फाँस डाली
मैंने न उसे दो घड़ी घास डाली
लहरों के सँग टूटे कगार-सा बहा नहीं हूँ मैं
मैं गीतकार का आसन हूँ, कहकहा नहीं हूँ मैं