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वक्त के दरिया में बहता जा रहा है आदमी / मोहम्मद इरशाद
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वक्त के दरिया मे बहता जा रहा है आदमी
जाने क्या क्या साथ लेता जा रहा है आदमी
आसमाँ पर हैं सितारे उस कदर हैं ख़्वाहिशें
हर कदम पर हाथ मलता जा रहा है आदमी
सौ बरस की उम्र तक जीने की ख़्वाहिश दिल में है
लम्हा-लम्हा क्यूँ मगर मरता जा रहा है आदमी
मंज़िलो की चाहतों में गुम हुआ क्यूँ इस तरह
सिर्फ ख़्वाबों में ही चलता जा रहा है आदमी
नस्ले आदम को कोई दुश्मन नहीं है दूसरा
ख़ुद से ही दुनिया में लड़ता जा रहा है आदमी
देख कर हैरत तुम्हें होती नहीं ‘इरशाद’ क्यूँ
रंग हर लम्हा बदलता जा रहा है आदमी