भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वक्त पड़ने पर नहीं आँखें चुराना चाहिये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वक्त पड़ने पर नहीं आँखें चुराना चाहिए.
हर किसी को दूसरों के काम आना चाहिए॥

कर रहे हैं एक दूजे की शिकायत किसलिए
दोष अपना भी जमाने को दिखाना चाहिए॥

स्वास्थ्य के रिश्ते निभाने में लगे हैं लोग सब
हों सुखी सब लोग कुछ ऐसा बहाना चाहिए॥

गालियाँ खाकर जमाने की जिये तो क्या जिये
जिंदगी में कुछ दुआएँ भी कमाना चाहिए॥

रूठ जाना है बहुत आसान दुनियाँ में मगर
रुष्ट हो जो भी उन्हें बढ़कर मनाना चाहिए॥

एक पल की ज़िन्दगी भी तो बहुत छोटी नहीं
मात्र पल का उम्र से रिश्ता निभाना चाहिए॥

काटने के वास्ते घिरते तिमिर के सैन्य को
आज अम्बर में नया सूरज उगाना चाहिए॥