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वक्त रउओ के गिरवले आ उठवले होई / मनोज भावुक
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वक्त रउओ के गिरवले आ उठवले होई
छोट से बड़ आ बड़ से छोट बनवले होई
अइसे मत देखीं हिकारत से एह चिथड़ा के
काल्ह तक ई केहू के लाज बचवले होई
धूर के भी कबो मरले जो होखब ठोकर तs
माथ पर चढ़ के ऊ रउआ के बतवले होई
जे भी देखियो के निगलले होई जीयत माछी
अपना अरमान के ऊ केतना मुअवले होई
काश! अपराध के पहिले तनी सुनले रहितीं
आत्मा चीख के आवाज़ लगवले होई
जिंदगी कर्म के खेला ह कि ग्रह-गोचर के
वक्त रउओ से त ई प्रश्न उठवले होई
जब मेहरबान खुदा ,गदहा पहलवान भइळ
अनुभवी लोग ई लोकोक्ति बनवले होई
अइसहीं ना नू गजल-गीत लिखेलें भावुक
वक्त इनको के बहुत नाच नचवले होई