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वजह बता दयूं आज म्हारा क्यूं हिंदुस्तान दुखी सै / कृष्ण चन्द

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वजह बता दयूं आज म्हारा क्यूं हिंदुस्तान दुखी सै
मिलता ना इंसाफ आड़ै मजदूर किसान दुखी सै

हड्डी पसली पीस दई यें कूट कूट कै खागे
ना छोड्य़ा मांस कसाईयां नै यें चूट चूट कै खागे
बढ़रे पेट ढोल के से यें ऊठ ऊठ कै खागे
म्हारी कमाई लहू पसे की यें लूट लूट कै खागे
ना पेट में रोटी ना तन पै कपड़ा एक टूटी छान दुखी सै

यें कल्बां मैं ऐश करैं सैं डालमियां और टाटा
पडया भुखा मील कर्मचारी ना दो रोटी का आटा
सब क्यांहे पै काबिज होगे यें इरला बिरला बाटा
जब देणी आवै मजदूरी तै यें तुरत दिखादें घाटा
काम करणिया इस भारत मैं बहुत महान दुखी सै

कोए ऐडी रगड़ रगड़ कै मर्ग्या बाह्र पड़या पाळे मैं
कोए पत्थरां कै नीचै दबग्या कोए डूब गया नाळे मैं
आंख फूटगी अन्धा होग्या कोए धूम्मे काळे मैं
फिर भी रोटी ना थ्याई कुछ कसर नहीं चाळे मैं
कमा कमा घर भर दिया फिर भी बेअनुमान दुखी सै

दई बिठा रुखाळी बिल्ली जड़ मैं यो दूध उघाड़ा धरकै
जब बाड़ खेत नै खाण लगै तै के जहाज चलैंगे भरकै
पाप के बेड-ए भवसागर से पार लगै ना तिरकै
ना सुख पाया दुनियां म्हं कोए बुरा गरीब का करकै
“कृष्ण चंद” कहै इस दुनिया म्हं न्यों नादान दुखी सै