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वज़नी साँसों में पिस रहा है दिन सारा/ विनय प्रजापति 'नज़र'
Kavita Kosh से
लेखन वर्ष: 2004
वज़नी साँसों में पिस रहा है दिन सारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा
नम है नफ़स-नफ़स मेरे सीने में
क्यों खर्च नहीं होती साँस जीने में
मेरी बाक़ी ज़िन्दगी का तुम ही सहारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा
नामे-इश्क़ जायेगा मेरा सब-कुछ
क़िस्मत क्यों नहीं कहती आज कुछ
नाख़ुदा कश्ती को कब मिलेगा सहारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा
‘नज़र’ को नयी ज़ीस्त दी तुमने शीना
जीने का तुमने सिखाया मुझको क़रीना
तेरे ही साथ मैंने हर लम्हा गुज़ारा
मुझे आज भी है इन्तिज़ार तुम्हारा
शब्दार्थ:
वज़नी: heavy; नफ़स: breath; नाख़ुदा: boater, sailer;
ज़ीस्त: life; शीना: shine; क़रीना: style