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वतन की आबरू देखें बचाने कौन आता है / रविकांत अनमोल

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वतन की राह में सर को कटाने कौन आता है
वतन की आबरू देखें बचाने कौन आता है

कफ़न बाँधे हुए सर पर मैं निकला हूँ कि देखूँ तो
बचाने कौन आता है मिटाने कौन आता है

जो पहरेदार थे वो सब के सब हैं लूट में शामिल
जो मालिक हैं उन्हें, देखो जगाने कौन आता है

वतन को बेच कर खुशियाँ खरीदी जा रही हैं अब
वतन के वास्ते अब ग़म उठाने कौन आता है

वतन की ख़ाक का क़र्ज़ा चुकाने का है ये मौक़ा
चलो देखें कि ये क़र्ज़ा चुकाने कौन आता है

परायों से लुटे अपनों ने लूटा फिर भी ज़िंदा हैं
कि देखें कौन सा दिन अब दिखाने कौन आता है

लिये वो सरफ़रोशी की तमन्ना दिल में ऐ अनमोल
यहाँ अब कातिलों को आज़माने कौन आता है