भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वतन से दूर हूँ लेकिन / भावना कुँअर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वतन से दूर हूँ लेकिन

अभी धड़कन वहीं बसती

वो जो तस्वीर है मन में

निगाहों से नहीं हटती।


बसी है अब भी साँसों में

वो सौंधी गंध धरती की

मैं जन्मूँ सिर्फ भारत में

दुआ रब से यही करती।


बड़े ही वीर थे वो जन

जिन्होंने झूल फाँसी पर

दिला दी हमको आजादी।

नमन शत-शत उन्हें करती।