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वनोॅ मेॅ वसंत / प्रदीप प्रभात

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महुआ के फूलों रोॅ मादक सुगंध
लता कुंज के बीचोॅ सेॅ
छनी-छनी केॅ आवी रहलोॅ
सुरूजोॅ रोॅ किरिन
राजमहल के पहाड़ी वालासिनी रोॅ
पायलोॅ के मादक झनकार
गाछ के छाया मेॅ पक्षी के कलरव
कोयल रोॅ कूक, भौंरा रोॅ गुंजन
पहाड़ी नद्दी, झरना, रोॅ कल-कल संगीत
जंगल, झाड़ी, झुरमुठ मेॅ पललोॅ
आरेा काँटोॅ मेॅ खिललोॅ अनामिका
होकरा पेॅ हँसी रहलोॅ सौ-सौ बसंत।
एक वनफूल सेॅ शरमाय छै
राजमहल पहाड़ी के शकुन्तला।
राजवतरिका के गुलाब सेॅ
राजमहल जंगल के कचनार छै सुन्दर।