वन‐बगिया लगाइ द / हर्षनाथ पाण्डेय
देसवा के करीं गुलजार हो
बन बगिया लगाइ द
जीनगी मे आई बहार हो
बन बगिया लगाइ द
किसिम ‐ किसिम के पेड लगाईं जा
परयावरण के जान बचाईं जा
इहे बा अरज सरकार हो
बन बगिया लगाई द
जीनगी में आई.....
बनराज, बाज नां लउके हिरनवां
गौरयाके'चीं‐चीं' ना चहके अंगनवां
काहें.. हरियर लागेना बाधार हो
बन बगिया लगाइ द
जीनगी में आइ....
जंगल बचाईं तबे बाचीऽ धरतीया
आम, बर, पीपल बिना लागी परतीया
चान ‐ सुरूज मजधार हो
बन बगीया लगाइ द
जीनगी में आइ....
धरती‐ आकाश के नाता पुरान बा
हिमाला, शिवाला, समंदर हमार बा
ओजोन के परत रखवार हो
बन बगीया लगाइ द
जीनगी में आइ....
कुल्ह 'गरू‐माल', नदी, चिरईं बचाईं जा
राखी पहचान गीत गंगा के गाईं जा
'हरष' जीनगी बनिहें रसधार हो
बन बगीया लगाइ द
जीनगी में आइ बहार हो
बन बगीया लगाइ द।
इस गीत को गीतकार गुलजार के उपस्थिति में पर्यावरण गीतमाला के अंतर्गत बिहार सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा लोकार्पित किया गया है।