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वफ़ा का ज़िम्मा किसी एक पर नहीं होता / राम गोपाल भारतीय
Kavita Kosh से
वफ़ा का ज़िम्मा किसी एक पर नहीं होता
दिलों में फ़ासले लेकर सफ़र नहीं होता
किसी का टूट गया दिल तुम्हे पता ही नहीं
कोई भी दोस्त हो यूँ बेख़बर नहीं होता
किसी का बसता हुआ घर उजाड़ने वालो
हरेक शख़्स की क़िस्मत में घर नहीं होता
दिलों के बीच मुक़दमा भी क्या मुक़दमा है
की जिसका फ़ैसला सारी उमर नहीं होता
हरेक बात उड़ा देता है वो बातों में
किसी भी बात का उस पर असर नहीं होता