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वफ़ा का दौर न कोई इमान बाक़ी है / रंजना वर्मा
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ऊबने जी लगा आज संसार से।
फूल हैं हारने अब लगे ख़ार से॥
कटु वचन मत कहें बोल मीठे रहें
हैं बिदकते सदा मीत तकरार से॥
झूठ के पाँव होते नहीं सत्य है
चल रहा विश्व केवल सदाचार से॥
अब मना लीजिये रूठ जाये अगर
प्यार से या कि फिर मीठी मनुहार से॥
क्या करें चंचला कामना कब थकी
झुक रही है कमर पाप के भार से॥
साँवरे श्याम का नाम लेते रहें
वो बचा ले भँवर और मझधार से॥
राधिकानाथ को सौंप जीवन दिया
डर नहीं अब हमें जीत या हार से॥