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वफ़ा की राह में दुश्वारियां हैं / रिंकी सिंह 'साहिबा'
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वफ़ा की राह में दुश्वारियाँ हैं।
लबों पर इश्क़ की गुलकारियाँ हैं।
हज़ारों बंदिशें हैं ख़्वाहिशों पे,
जहान ए दिल की भी तैय्यारियाँ हैं।
सबब इस शाख़ ए गुल के टूटने का,
हवा ए तुंद की मक्कारियाँ हैं।
अभी तक रंज से फ़ारिग़ नहीं दिल,
अभी तक इश्क़ में ग़मख़्वारियाँ हैं।
मिलाई आँख जाकर मौत से तब,
तुम्हारे घर में ये किलकारियाँ हैं।
ख़ुलूस ए दिल हमारा कम नहीं है,
तबीयत में मगर खुद्दारियाँ हैं।
रही है 'साहिबा' तो सादगी में,
दिलों के खेल में अय्यारियाँ है।