भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा / रतन पंडोरवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा
गुज़र कर हद्दे-हस्ती से बक़ा की इंतिहा बन जा

तिरा जोशे-तलब ख़ुद मंज़िले-मकसूद बन जाये
सहारा रहनुमा का छोड़ कर ख़ुद रहनुमा बन जा

गुज़र हद्दे-तऐयून से क़दम आगे बढ़ा अपने
लगा कर नारए-मंसूर बंदे से ख़ुदा बन जा

यही तक्लीमे-उल्फ़त है यही तालीमे-वहदत है
कि तालिब की वफ़ा बन जा, हसीनों की अदा बन जा

तिरे इश्के-हक़ीक़ी में वो आलमगीर जज़्बा हो
गुबारे-राह बन कर वुसअते-अर्ज़-ओ-समा बन जा

जनाबे-दिल के फैज़ाने-सुख़न पर दिल तसद्दुक़ है
'रतन' उस्ताद के कदमों पे गिर कर ख़ाके-पा बन जा।