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वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा / रतन पंडोरवी
Kavita Kosh से
वफूरे-शौक़ से राहे-वफ़ा में नक़्शे-पा बन जा
गुज़र कर हद्दे-हस्ती से बक़ा की इंतिहा बन जा
तिरा जोशे-तलब ख़ुद मंज़िले-मकसूद बन जाये
सहारा रहनुमा का छोड़ कर ख़ुद रहनुमा बन जा
गुज़र हद्दे-तऐयून से क़दम आगे बढ़ा अपने
लगा कर नारए-मंसूर बंदे से ख़ुदा बन जा
यही तक्लीमे-उल्फ़त है यही तालीमे-वहदत है
कि तालिब की वफ़ा बन जा, हसीनों की अदा बन जा
तिरे इश्के-हक़ीक़ी में वो आलमगीर जज़्बा हो
गुबारे-राह बन कर वुसअते-अर्ज़-ओ-समा बन जा
जनाबे-दिल के फैज़ाने-सुख़न पर दिल तसद्दुक़ है
'रतन' उस्ताद के कदमों पे गिर कर ख़ाके-पा बन जा।