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वयस / इला कुमार
Kavita Kosh से
हवाओं के साथ,
क्या उम्र बढ़ती है?
न, यह तो मन के ढलानों पर,
ऊपर को चढ़ती
नीचे से कम होती है,
पुराने एहसास तुर्श हो उठते हैं,
बीते लम्हें जालीदार दीवारों के पीछे दुबके हुए
नीले मेहराबदार सीढ़ियों पर ठिठके
गुलाबी साए,
गोल मजबूत पायों के पीछे लुक छिपकर,
भरमा जाते हैं,
हाथ हिला,
गुम हो जाते हैं,
पुराने दिनों को क्षणभर को लौटा
सारा मानस,
सहला जाते हैं