भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वरदानों की झड़ी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
भोले बाबा के नंदी के,
कहा कान में जाने क्या!
मैंने पूछा, तो वह बोली,
गुप्त बात मैं क्यों बोलूँ।
नंदी जी से जो बोला है,
भेद आप पर खोलूँ क्यों।
मैंने तो उनसे जो माँगा,
तुरत उन्होंने मुझे दिया।
शिव मंदिर में अक्सर बच्चे,
नंदी जी से मिलते हैं।
उन्हें देखकर नन्हें मुखड़े,
कमल सरीखे खिलते हैं।
मन की बात कान में उनके,
कहते, आता बहुत मजा।
बातें अजब गजब बच्चों की,
सुनकर नंदी मुस्काते।
मांगों वाले ढेर पुलंदे,
शंकरजी तक ले जाते।
फिर क्या! शिवजी वरदानों की,
झटपट देते झड़ी लगा।