वरदान चाहियो / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
हमरा देशोॅ के उत्थान चाहियोॅ
प्रभु यहेॅ विमल वरदान चाहियोॅ।
हर गीत यहाँ पर टूटलोॅ छै
हर साज यहाँ बिखरलोॅ छै
अपने लोगोॅ के भीतर घात सें
जन के मन यहाँ हहरलोॅ छै
देश लूट में जे सौसे डूबलोॅ छै,
ओकरा शुद्ध-बुद्ध के ज्ञान चाहियोॅ।
टूटलोॅ जे छै उनका जोड़ोॅ
भरलोॅ अन्हार के कारा तोड़ोॅ
जीयोॅ-मरोॅ बस देशोॅ लेली
धार नदी के आबेॅ मोड़ोॅ
हास-विलास छोड़ी केॅ हमरा
निज देश अभिमान चाहियोॅ।
झूठ नै बोलोॅ विधाता वाम छै
हर काम लेली मत कहोॅ कि राम छै
पत्थर भी पिघली जैतेॅ अतना में
बस देशोॅ लेॅ तोरोॅ पिघलै के काम छै
अलस भाव त्यागी केॅ जागोॅ
हमरा वहेॅ पुरानोॅ शान चाहियोॅ।
हर लोग यहाँ छै लूटै में भिड़लोॅ
सबके मन छै कुढ़लोॅ- कुढ़लोॅ
के बदलतै ऊ रसना सत्ता लोभी केॅ
ई रं जौं रहबौ तोंय डरलोॅ- डरलोॅ
सड़लोॅ- पचलोॅ ई ढ़ाँचा लेली
सच में हमरा अर्जुन के बाण चाहियोॅ।