वर्किंग लेडी वर्सेस श्रमेव जयते / अभिनव अरुण
तुमने मेरी तारीफ़ की
आठ आठ ईंटें सर पर उठाकर
चलते देख भी मेरे परिश्रम को नहीं सराहा
जानते हो छाती पर आँचल और सर पर बोझ का संतुलन
पेट के समीकरण से सधता है
तुम्हारी आँखों में कुछ भी हो मैंने नहीं देखा
उससे मुझे मतलब भी नहीं
मुझे तो हर पल दिखती है मेरे दुधमुंहें बच्चे की छवि
इन्हीं ईंटों में तभी तो बड़ी शाइस्तगी से उठाती हूँ उनको
संभाल कर रखती हूँ सर पर
चढ़ती हूँ एक दो तीन माले तक बनी अधबनी सीढ़ियाँ
जानती हूँ अभी जिन बिना खिड़की दरवाज़े के कमरों में
हम रह रहे कल उन तक फटकने की भी इज़ाज़त न होगी हमें
तुम्हारी बैठक में सजेगी मुझ मजदूरनी की आधुनिक पेंटिंग
झलकते आँचल वाली
तुम्हारे शयन कक्ष में लगी पेंटिंग में संभव है आँचल उतर भी जाए
पर मैं हरगिज़ नहीं उतरूंगी अपनी नज़र से नीचे
मैं ज़रूरत की दाँव पर लगी द्रोपदी नहीं
और मैंने कभी कृष्ण को नहीं पूजा