भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्ग-भावना-सटीक / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अवतंसों का वर्ग हमारा : खड्ïगधार भी, न्यायकार भी।
हम ने क्षुद्र, तुच्छतम जन से
अनायास ही बाँट लिया श्रम-भार भी, सुख-भार भी।
बल्कि गये हम आगे भी-हम निश्चल ही हैं उदार भी।
टीका-(यद्यपि भाष्यकार है दुर्मुख
हम लोगों का एकमात्र श्रम है-सुरति-श्रम
उस अन्त्यज का एकमात्र सुख है-मैथुन-सुख।
दिल्ली, 11 फरवरी, 1941