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वर्जना से प्रेम / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
पहाड़ वर्जना है
वर्जना है पहाड़ हवा के लिए
वर्जना है बाँध
बाँध वर्जना है नदी के प्रवाह के लिए
गति के लिए वर्जना है गतिरोध,
श्वेत को बरजता है श्याम
ऊष्मा को शीत
और प्रकाश को अन्धकार
संसार की अधोगति
कि वर्जनाओं में जॊता हैसंसार
संसार में वर्जनाएँ हैं इस कदर
कि जीवन मायने वर्जनाएँ बेहिसाब
इसका विशुद्ध विलोम है प्रेम
ऐन वर्जनाओं को बरजने के क्षण से
शुरू होता है प्रेम