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वर्जित: मेरी चेष्टा / हरीश प्रधान
Kavita Kosh से
विस्मृति थी,
समर्पित क्षणों में
तुहारे सम्पूर्ण समर्पण की
कभी तो
कामना की
चिरन्तन अस्थिर लहर से
पूर्ण स्थिर
स्थितप्रज्ञता की।