भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्तमान युग / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साड़ी धोती मिल रुग्ण हुआ अब
घर-घर बरमूडा मिनी-स्कर्ट
आप भैया जी चुनड़ी ओढ़ें
भाभी पहनती रिमलेश -शर्ट
चाची मर्यादित बन बैठीं
चाचा गले में धर्म का बाना
नव-वधू के हाथ में बियर
कैसा यह मॉडर्न ज़माना ?
दिन भर की गिनती करूँ तो
छोटी वधू सात बार खाती
शाम प्रहर जब पति आते हैं
हाथ ब्रश लेकर उपवास बताती
अस्सी दशक में माँ से मम्मी
फिर मॉम अब हुई मम्मा
माँ के भाई का नाम क्या रखूँ ?
मामा पिघल बन गए झामा
अपने पुत्र ज्यादा प्यारा
विदेशी कुत्ता है अब लगता
पति -पुत्र बंगले में बैठे हैं
"टॉमी " मैडम संग टहलता
चरण स्पर्श का श्राद्ध हुआ अब
छोटे बच्चे को भी उखड़ा बाय
भाभी अकेली मधुशाला में
नवल नेही संग नैन लड़ाये
संतति पश्चिम की बोली उगले
" माँ" हिंदी कैसे बोलें दैया ?
अंग्रेज़ी भाषा मगज घुसा नहीं
बिना समझे बोलती या!या!या!
तिलकोर -मखाना से मन भरमा
अब जीभ चढ़े ना मकई का लावा
पोपकोर्न चौमिन दलीय लिए
मोंछ ऐंठते बैठे बाबा