वर्तमान / कुलदीप सिंह भाटी
जीवन का सबसे सुन्दर
हिस्सा होता है वर्तमान।
भूत की यादों में दुबका
भविष्य को संवारने का यत्न,
भूत की आधारशिला पर
भविष्य की अट्टालिका के स्वप्न
देखता वर्तमान।
पर भूत, भविष्य और वर्तमान में
सबसे कम उम्र
लगती है वर्तमान की।
कम ही क्या इतनी कम की
बस,वर्तमान की
इस कविता का शब्द-शब्द
जैसे-जैसे गढ़ता जाता है,
वैसे-वैसे मरता जाता है वर्तमान
और उसकी जगह लेता रहता है
कुछ क्षण पूर्व का भविष्य।
क्षण भर ही जी पाता है वर्तमान
और सांस लेते-लेते
कब समा जाता है
काल के गाल में वर्तमान।
फिर भी वर्तमान जीत जाता है
यह जन्म-मरण की जंग
क्योंकि वर्तमान फिर
पुनर्जन्म लेकर प्रतिष्ठापित
कर लेता है स्वयं को भविष्य से
और वह नहीं जन्म लेने
देता है भविष्य को।
हमारी दृष्टि में जो
वर्तमान क्षणिक है
वहीं वर्तमान दृष्टि
के फेर से हो जाता है
अजर और अमर।
और फिर सिद्ध कर देता है
'यथा-दृष्टि तथा-सृष्टि'
के सिद्धांत को।