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वर्ना मत कहना / पद्मजा शर्मा

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सुनो तो वैसे सुनना
जैसे बरसों से
सुन रहा था लहना
बिन कहे ही प्रेम

वर्ना मत सुनना

कहो तो कहना वैसे
जैसे कहता था लहना
सुन ले हर दिशा
बिन कहे ही प्रेम

वर्ना मत कहना

करो तो करना वैसे प्रेम
जैसे कर रहा था लहना
पूजा के दीपक सा
धीमे-धीमे जल रहा था लहना

वर्ना मत करना प्रेम

मृत्यु की खाई में
यादों के संग
चल रहा था लहना
उसे किसी से कुछ नहीं था कहना
क्योंकि वह था लहना

प्रेम का नाम है सहना
और वह होता है लहना
सहो तो सहना ऐसे
जैसे सह रहा था लहना

वर्ना मत कहना

मरो तो मरना ऐसे
जैसे ख़ुशी-ख़ुशी देकर अपने को
मर गया था लहना
मरकर अमर हो गया लहना

कहना तो कहना लहना
वर्ना मत कहना
प्रेम।