वर्षाऽमंगल / हरिवंशराय बच्चन
पुरुष :
गोरा बादल !
स्त्री :
गोरा बादल !
दोनों :
गोरा बादल !
गोरा बादल तो बे-बरसे चला गया;
क्या काला बादल भी ब-बरसे जाएगा ?
पुरुष :
बहुत दिनों से अंबर प्यासा !
स्त्री :
बहुत दिनों से धरती प्यासी !
दोनों :
बहुत दिनों से घिरी उदासी !
गोरा बादल तो तरसाकर चला गया;
क्या काला बादल ही जग को तरसेगा ?
पुरुष :
गोरा बादल !
स्त्री :
काला बादल !
दोनों :
गोरा बादल !
काला बादल !
पुरुष :
गोरा बादल उठ पच्छिम से आया था--
गरज-गरज कर फिर पच्छिम को चला गया.
स्त्री :
काला बादल उठ पूरब से आया है--
कड़क रहा है,चमक रहा है,छाया है.
पुरुष :
आँखों को धोखा होता है !
स्त्री :
जग रहा है या सोता है ?
पुरुष :
गोरा बादल गया नहीं था पच्छिम को,
रंग बदलकर अब भी ऊपर छाया है !
स्त्री :
गोरा बादल चला गया हो तो भी क्या,
काले बादल का सब ढंग उसी का और पराया है.
पुरुष :
इससे जल की आशा धोखा !
स्त्री :
उल्टा इसने जल को सोखा !
दोनों :
कैसा अचरज !
कैसा धोखा !
छूंछी धरती !
भरा हुआ बादल का कोखा !
पुरुष :
गोरा बादल !
स्त्री :
गोरा बादल !
पुरुष:
गोरा बादल तो बे-बरसे चला गया;
क्या काला बादल भी बे-बरसे जाएगा ?
स्त्री :
गोरा बादल तो तरसाकर चला गया;
क्या काला बादल ही जग को तरसेगा ?
दोनों :
पूरब का पच्छिम का बादल,
उत्तर का दक्खिन का बादल--
कोई बादल नहीं बरसता .
वसुंधरा के
कंठ-ह्रदय की प्यास न हरता.
वसुधा तल का
जन-मन-संकट-त्रास न हर्ता.
व्यर्थ प्रतीक्षा !धिक् प्रत्याशा !धिक् परवशता !
उसे कहें क्या कड़क-चमक जो नहीं बरसता !
पुरुष :
गोरा बादल प्यासा रखता !
स्त्री :
काला बादल प्यासा रखता
दोनों :
जीवित आँखों की,कानों में आशा रखता,
प्यासा रखता !प्यासा रखता !प्यासा रखता !