भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षा-नृत्य गीत / चन्द्रमणि
Kavita Kosh से
झमकि कऽ बरिसह बादर भइया
खेत आर खरिहान हौ
चमकि डराबै छिन-छिन बिजुरी
ठनका मारै तान हौ। झमकि...
पानि बिना पटपटा गेलैये
हरियर हरियर चास
दोसरहिले बनलह तों जलधर
पूरह धरतीक आस
बरसि जाह देबहु गहना आ
सतरंगा परिधान हौ। झमकि....
बनियाके बकिऔता बाजै
ओल सनक नित बोल
जोरह गूड़ा सानी लगता
आर धाम केर मोल
तों दुःख नहि बुझबह बुझतैके
आबह बनि भगवान हौ। झमकि...
सबहक खर्ची घटले मानह
जिनगी दै घुसकुनिया
भूखे चोंचा खोता कानै
गामो पर टुनमुनिया
टुकधुम-टुकधुम फसिल जिबैये
लुकझुक हमरहु प्रान हो। झमकि....