भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षा आई / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बड़े ज़ोर से पानी बरसा निकले बच्चे घर से ।
आँगन में हो गए इकट्ठे बच्चे इधर-उधर से ।।
प्रीति मुन्ना को गोदी में लेकर बाहर आई ।
नटखट रवि ने एक बड़े काग़ज़ की नाव बनाई ।।
आँगन के बहते पानी में नाव बही काग़ज़ की ।
बबलू जी ने चट से अपनी माँ की गोदी तज दी ।।
निशा बजाकर ताली नाची सुधा मचाती हल्ला ।
देख बुलबुला मंजू बोली पानी में रसगुल्ला ।।
बात मज़े की तुम्हें सुनाऊँ सुनना कान लगा कर ।
दिन्नू ने कर लिए इकट्ठे बालक बुला-बुलाकर ।।
देखो मम्मी की बहादुरी पानी से घबरातीं ।
पापा जी पानी से डरकर पहन रहे बरसाती ।।