भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्षा आती रे / हरेराम बाजपेयी 'आश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्षा आती खुशियाँ लाती
सबका मन हर्षाती रे। वर्षा आती रे...
बादल जिसके अनुचर हैं,
हवा जिसके सहचर है,
दोनों को साथ ले गगन में,
रिम झिम गीत सुनाती रे। वर्षा आती रे...
सुखी तपती धरती जागी,
डर कर गर्मी सरपट भागी,
शीतल बहने लगी हवाएँ,
पात-पात को गले लगाएँ,
कभी गाँव में, कभी शहर में,
खुशियाँ चली लुटाती रे। वर्षा आती रे...
गली में पानी, नदी में पानी,
तालाबों में पानी ही पानी,
मछली लगी नाचने जल में,
पाकर मीठा ताजा पानी रे,
मेंढक चले है बरात सजाकर
झींगुर बने बराती रे। वर्षा आती रे।
आम पक रहे जामुन काली,
खुश किसान, खुश है माली,
खेतों में चल रहे ट्रेक्टर
काम करो अब नहीं सैर कर,
कहीं है धान कहीं है सोया,
कहीं मक्का की पाती रे... वर्षा आती रे ...