भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षा और बच्चे / दीनदयाल शर्मा
Kavita Kosh से
छटपट-छटपट वर्षा होती,
खटपट-खटपट गिरते ओले।
गली-गली और हर चौराहे,
उधम मचाते बच्चे डोले।
हा-हा हू-हू ही-ही करते,
बच्चों ने मारी किलकारी।
दूर-दूर तक महकी जैसे,
भाँत-भँतीली खुशबू प्यारी।
वर्षा हुई बंद तो देखा,
इन्द्रधनुष था नभ में प्यारा।
सतरंगी जादू सा लगता,
सबको भाया सबसे न्यारा।।