वर्षा की बहार / श्रीनाथ सिंह
आसमान में उमड़े बादल,
पृथ्वी पर हरियाली है
नन्हीं के नन्हें हाथों में,
मेंहदी की नव लाली है।
लड़के सुख से झूल रहें हैं,
कैसा झूला डाला है
हर हर करता बड़े जोर से,
नीचे बहता नाला है
घर में पानी वन में पानी,
पानी की ही माया है।
पानी पानी पैदल चलना,
मुन्नू को भी भाया है।
लम्बी लम्बी पतली पतली,
घास हवा पर हिलती हैं।
उन पर पड़ पानी की बूंदें,
नव मोती सी खिलती हैं।
लो फिर पानी लगा बरसने,
जल्दी घर को भागो यार!
छत पर देखो,मुन्नी भी अब,
अपनी गुड़िया रही संवार।
गली गली से देखो कैसी,
बही विकट पानी की धार।
आज न हम पढ़ने जायेंगे,
आती वहां बड़ी बौछार।
सोचो तो जी ईश्वर ने क्या,
वर्षा खूब बनाई है!
उसकी सारी सृष्टि की बस,
छिपी यहीं चतुराई है।
पृथ्वी ने यह हरियाली सब,
वर्षा द्वारा पाई है।
वर्षा ही से बरस रही,
ईश्वर की बड़ी बड़ाई है।
अन्न इसी से पैदा होता,
यही किसानों का जीवन।
सच पूछो तो केवल वर्षा,
ही है इस भारत का धन।
आओ शिशुओं,हाथ जोड़,
वर्षा को हम सब करें प्रणाम।
क्योंकि उसी से प्राप्त हुए हैं,
हमको खेल और आराम।