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वर्षा गीत / डोमन साहु 'समीर'

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लहकै पुरवैया कि लरकै बदरिया
रही-रही--
मारै कनखी बिजुरिया, कि रही-रही
बरसै जे पनिया कि चूवै अगरिया
भरी आनौं--
कैसें खाली गगरिया, कि भरी आनौं
अमुवाँ के ठारी पर भोरे--भिनुारिया
कुहू-कुहू--
बोलै कारी कोयलिया कि कुहू-कुहू
जिया मोरा सालै कि पिया परदेसिया
केकरा सें--
खोलौ हिरदा के बतिया कि केकरा सें
आपन्हौं नै आवै कि भेलै निरमोहिया
चिठियो नै--
भेजै कि भुललै सुरतिया, चिठियो नै
घरोॅ पिछुबरियाँ निमियाँ बिरिछिया
ठारी-ठारी--
बुलै पतरी नगिनियाँ, कि ठारी-ठारी
सपना जे देखलाँ, टूटी गेलै निंदिया
घुरी-घरी--
जागै हमरोॅ संदेहिया, कि घुरी-घुरी
देवौ दूध-लावा गे पतरी नगिनियाँ
घुरी आबेॅ--
मोर पिया परदेसिया, कि घुरी आबेॅ।