भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षा गीत / सुरेश विमल
Kavita Kosh से
छूम छनन छन
ता-ता थेई
बूंद नर्तकी नाचें।
गरड़ गरड़ गड़
गड़ गड़-गड़ गड़
मेघ नगाड़े बाजें।
बस्ती बस्ती
बरखा झम-झम
सुबह हो गई सांझें
गली-गली को
अधर उठाएँ
बच्चों की आवाजें।
ऊब डूब सब
नदियाँ पोखर
मेंढक पोथी बांचें,
तोड़ तटों के बंध
हिरण-सा
पानी भरे कुलांचे।
मस्त गगन
झूमा है सावन
माटी महक उड़ाए,
धुले धुले
जंगल में बैठी
हरियाली मुस्काए।