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वर्षा गीत / सुरेश विमल

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छूम छनन छन
ता-ता थेई
बूंद नर्तकी नाचें।

गरड़ गरड़ गड़
गड़ गड़-गड़ गड़
मेघ नगाड़े बाजें।

बस्ती बस्ती
बरखा झम-झम
सुबह हो गई सांझें

गली-गली को
अधर उठाएँ
बच्चों की आवाजें।

ऊब डूब सब
नदियाँ पोखर
मेंढक पोथी बांचें,

तोड़ तटों के बंध
हिरण-सा
पानी भरे कुलांचे।

मस्त गगन
झूमा है सावन
माटी महक उड़ाए,

धुले धुले
जंगल में बैठी
हरियाली मुस्काए।