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वर्षा बहार / मुकुटधर पांडेय
Kavita Kosh से
वर्षा बहार सब के, मन को लुभा रही है
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है
बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं
पानी बरस रहा है, झरने भी ये बहे हैं
चलती हवा है ठण्डी, हिलती हैं डालियाँ सब
बागों में गीत सुन्दर, गाती हैं मालिनें अब
तालों में जीव जलचर, अति हैं प्रसन्न होते
फिरते लखो पपीहे हैं, ग्रीष्म ताप खोते
करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे
मेंढ़क लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे
खिलते गुलाब कैसा, सौरभ उड़ रहा है
बागों खूब सुख से, आमोद छा रहा है
चलते हैं हंस कहीं पर, बाँधे कतार सुन्दर
गाते हैं गीत कैसे, लेते किसान मनहर
इस भाँति है, अनोखी वर्षा बहार भू पर
सारे जगत् की शोभा, निर्भर है इसके ऊपर।