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वर्षा / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’

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वर्षा – ओला – वृष्टि, सब ही तेरा नाम है
जलधि से जल चुरा, बरसाना तेरा काम है।
बहुत प्यारी महारानी, नभ की रानी हो
घुम – फिर तुम आ जाती, धरा तेरा धाम है।
साथ देता जलद , सूरज हाथ बटाता है
बिजली की चकाचौंध कृषक का पैगाम है।
आँधी – तुफान को लाती, जब गुस्से में अाती
तहस – नहस कर जाती, इसलिए बदनाम है।
उफान – तुफान मचाती, बाढ़ नदियाँ लाती
अफरा – तफरी मचती, जैसे कि संग्राम है।
भू की संतुलन हम, मिलकर सब बिगाड़ रहे
होती चर्चा खूब इसकी, अब सुवह-शाम है।
हम सभी बदलेंगे यहाँ, कौन जानता है
जो इसकी पहल करता, वही बदनाम है।