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वर्षा / रामधारी सिंह "दिनकर"

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अम्मा, ज़रा देख तो ऊपर
चले आ रहे हैं बादल ।
गरज़ रहे हैं, बरस रहे हैं,
दीख रहा है जल ही जल ।

हवा चल रही क्या पुरवाई,
झूम रही डाली - डाली ।
ऊपर काली घटा घिरी है,
नीचे फैली हरियाली ।

भीग रहे हैं खेत, बाग़, वन,
भीग रहे हैं घर-आँगन ।
बाहर निकलूँ, मैं भी भीगूँ,
चाह रहा है मेरा मन ।