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वर्षा : तीन सुभाषित / महेन्द्र भटनागर
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(तीन सुभाषित)
- (1)
अंक भर-भर नव सलेटी बादलों को
स्नेह-पूरित आ गयी बरसात रे !
हर मलिन उर को सहज ही दे गयी मधु
भावनाओं की नयी सौगात रे !
- (2)
एक-रसता स्वर अनारत भंग कर जब
राग बन रिमझिम बरसती है घटा,
दूर क्षितिजों तक बिखर जाती अनावृत
हो तभी नव-सृष्टि की गोपन छटा !
- (3)
मन-सरोवर में नयी हलचल लिए, नव
हाव से रह-रह थिरकतीं उर्मियाँ,
कौन ने, अव्यक्त मधुरस-धार में यों
प्राण मेरा आज रे नहला दिया !