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वर्षों बाद दिखे / महेश सन्तोषी
Kavita Kosh से
आज जब तुम वर्षों बाद दिखे
आँख के हर कोने में
एक अभाव बिखरा-सा दिखा।
जो घाव कभी भरा नहीं
फिर से ताजा, हरा-सा दिखा
आज जब तुम वर्षों बाद दिखे।
हमें लगा ज़िन्दगी फिर वापस लौट चली
तुम्हें क्या पता तुम्हारी कमी
हमें ज़िन्दगी भर लगी।
अब तो पूरा-सा हुआ
अकेला सांसों का सफर
अकेले ही हर सुबह जगी।
अकेले ही हर सांझ ढली
आज जब तुम वर्षों बाद दिखे।
एक-एक कर जल उठे
कितनी सारी यादों के दिये,
एक-एक कर गले मिले
तुमसे मिलने की मुरादों को लिये।
जाने तुमने कब पोंछ लिये
आँख के वो दो आँसू
जो हमारे आँसुओं से
आये थे पास से मिलने के लिये?
आज जब तुम वर्षों बाद दिखे।