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वर्षों बाद / लाल्टू

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वर्षों बाद
अदिति
तुम वहीं
मैं वह

कान्फ्रेंस में पर्चे पढे जाते हैं
विद्यार्थी सवाल जवाब करते हैं
खमखयाली प्रकृति हम परखते हैं
बंद कमरों में निर्जीव उपकरणों के साथ

हमारे प्रोफेशनल चेहरों पर
भिन्न ग्रहों से आए सैलानियों-सी उदासीनता
विद्यार्थी सतर्क हैं
आपसी बातचीत को अदृश्य
दायरों में बाँधा है
हमारे शब्द इस वक्त उनका संसार हैं

खयालों में साथ हमारी यादें
वर्षों पहले के कुछ घंटे
कुछ झेंप भरी बातें

वर्षों बाद दस्तानों ढँकी उंगलियाँ
छूती हैं वर्षों पहले की उंगलियों को
एक बडे शहर की
लंबी सडक पर
दिन भर चलते हम

वर्षों बाद
हमारे पास
कुछ कविताएँ
कविताओं में वर्षों का संसार बसा है
नर्म गर्म हाथों से छूते हम परस्पर बसाये संसार

गुजरे वक्त के तमाम शहरों
की कहानियाँ हम सुनते हैं
अनगिनत धूप-छाँव बारिश-तूफान
में एक दूसरे को ले चलते
हमसफर
धरती की नसें कुरेदते

थोडी-थोडी देर बाद
मुस्कराते सोचते
वर्षों बाद
अदिति
तुम वही

मैं वही।
टीन की छत पर टिप-टिप
टिंग-टिंग हो रही
ऊपर के मकानों से बहता पानी
यहीं कहीं गिर
तड-तड हो रहा
गड-गडा रहे बादल

थोडी देर पहले के सुनहरे देवदार
रंग बदलते गाढे हरे और काले
के बीच सरसरा रहे
इन सब के बीच
ऐ जानेमन
सुन रहा साँसों की सां-सां!