Last modified on 20 मार्च 2015, at 10:46

वर दो, लड़ने जाऊँगा / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

हल्दी घाटी किधर पिताजी,
मैं भी लड़ने जाऊँगा।
घोड़ा, भाला मुझे दिला दो,
मैं राणा बन जाऊँगा ॥

बैरी के छक्के छूटेंगे,
जब भाला चमकाऊँगा।
भाग जायेंगे शत्रु डर कर
समर भूमि जब जाऊँगा॥

इतने पर भी डटे रहे वह
तो फिर रण होगा भारी।
कट कर शीश अनेक गिरेंगे
देखेगी दुनियाँ सारी॥

चाहे शीश कटे मेरा भी,
तनिक नहीं घबराऊँगा।
पिता, आपका वीर ­पुत्र हूँ,
वर दो, लड़ने जाऊँगा॥