वसंत? / आभा झा
की सरिपहुं आएल ऋतु वसंत?
ठीके मधुवाएल दिग दिगंत?
प्रस्थान शिशिर कयलनि जखने
प्रस्फुटित भेलि सौंदर्य प्रभा,
वासंती वायु केर आगम पर
कुहु कुहु कोइलीक मृदुल गीत
देखल
सूनल
परखल चहुंदिस
उत्साहित उर अंबर किंचित!
झर-झर-झर-झर निर्झरक सदृश
की भेल परिष्कृत हृदय हमर?
कटु शब्द खसल निर्बाध मुदा
सहजहिं नहि निकसल नीकबोल।!
पट-पीत लपेटल कटि सृष्टिक
लखि दृष्टि भेल शीतल तैय्यो
कनियों नहि दृष्टिकोंण बदलल,
छिद्रान्वेशी छी जन्महि सँ!
अधिकार मात्र बूझल सभटा
कर्तव्यक भान न हो कखनो!
जड़ि में नहि पानि देब सीखल
हम ढुइस लड़ै छी फुनगी सँ।
पय हीन पयोधर पीबि कते
शिशुमन विहुँसत
किलकार करत!
रसप्लावित थिक कण-कण परंच
भत्त्थन अछि सद्भावक पोखरि!
की डूब देब?
की गाड़ब हम?
दुर्भावनाक नहि ओर अंत!
की... सरिपहुं आएल ऋतु वसंत?
ठीके मधुवाएल दिग दिगंत?