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वसन्तक प्रतीक्षा / राजकमल चौधरी

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केहन छल ओ भूख केहन छल ओ पिआस
एक जुग धरि करइत रहलहुँ स्वप्नके हम आस
खाइत रहलउँ आत्माके दाह
पिबइत रहलउँ नयन-जल नोनछाह
मग्न रहलउँ प्रणयदीक्षामे
अज्ञातिनी विदेशिनी अनागता अनामा प्रियाक मिलनप्रतीक्षामे

ओना त’ गप्प ई बूझल छल-
जे ई सभ थिक छलना, ओ सभ थिक छल
जे स्नेह थिक मिथ्या; प्रेम थिक प्रतारणा, मिलन थिक अनर्थ
जे चारि पइसाक आगाँ नइँ एहि सभक किछुओ अर्थ

जीवनक सभ स्वर छल शान्त
कनिओ ने क्लान्त, कनिओ ने हृदय छल पथभ्रांत
मुदा, अनचिन्हार बाट पर मीत एक भेटल, गीत एक भेटल
जेना हो एक्केठाम निखिल विश्वक सौन्दर्य सभ समेटल
दुःख दुविधा मेटल, जीवन मे अएलीह-‘‘सावित्री’’ भेटल संतोष
तृप्त भेल भूख आ पिआस, भरल आत्माक मधुकोष
किन्तु, कनिओ ने बेसी, मात्र दुइए छन
तदुपरान्त मोन भेल उन्मन, प्रान भेल पागल अनुखन
आब पुनः शून्य अछि प्रेम-कथा
आब पुनः बढ़ि रहल हृदय व्यथा
मुदा, एकमात्र प्राणेच्छा एखनउँ ए, तृप्तिके विह्वला
एखनउँए कल्पना सुकोमला
जे जीवनमे कहिओ त’ अयतीह पुनः हमर शकुन्तला
जे गौरवसँ प्रसन्न हयत आत्माक दुष्यन्त
व्यथाक हयत अन्त
जीवनमे विहुँसत वसन्त!