वसन्त आया / शमशेर बहादुर सिंह
फिर बाल वसन्त आया, फिर लाल वसन्त आया,
फिर आया वसन्त!
फिर पीले गुलाबों का, रस-भीने गुलाबों का
आया वसन्त!
सौ चाँद से मसले हुए जोबन पर
श्रृंगार की बजती हुई रागिनियाँ
रसराज की मधुपुरी की गलियों में
सौ नूरजहाँएँ, सौ पद्मिनियाँ
फिर लायीं वसन्त,
- उन्मत्त वसन्त आया!
फिर आया वसन्त :
फिर बाल गुलाबों का, फिर लाल गुलाबों का
आया वसन्त!
यौवन की उमड़ती हुई यमुनाएँ
फन-मणि की गुथी हुई लहर कलियाँ
रस-रंग में बौरी हुई राधाएँ
रस-रंग में माती हुई कामिनियाँ
फिर लायीं वसन्त।
उन्मत्त वसन्त आया!
फिर आया वसन्त :
फिर पीले गुलाबों, फिर रस-भीने गुलाबों का
आया वसन्त!
फिर लाल वसन्त आया, फिर बाल वसन्त आया,
फिर आया वसन्त!
[1949]